मराठीसाठी वेळ काढा

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गुरुवार, 16 सितंबर 2010

पेड़ से कहो - "खुश रहो"

पेड़ से कहो - "खुश रहो"
(मेरी डायरी के पन्नों से)

भीषण गर्मी, अचानक शहर को तितर-बितर कर देनेवाली मूसलधार बारिश ! बादलों का फटना, बाढ़ के रेले और गाँव के गाँव उजड जाना । यही सब पिछले दो तीन वर्षों में बार बार हो रहा है । कहीं पर बादल भाग जाते हैं, पानी बरसाते नहीं और सूखा पडने से फसलें सूख जाती हैं । फिर हम चिन्तित हो जाते हैं कि देखो पर्यावरण कितना बिगड रहा है ।

रायपुर में मेरे कुछ मित्रों ने एक कार्यक्रम तय किया जिसमें स्कूली बच्चों को एक-एक पौधा दिया जायेगा, जिसे वे अपने-अपने घर के पास लगाएँगे और फिर उसकी देखभाल करेंगे । उसे रोज पानी से सीचेंगे, पशुओं से बचाएँगे और इस प्रकार वृक्ष का संवर्द्धन करेंगे । अनुमान है कि इस कार्यक्रम में करीब पचास हजार स्कूली बच्चे भाग लेंगे । उनके लिये एक निबंध प्रतियोगिता भी होगी जिसमें उन्हें लिखना है कि पर्यावरण क्यों बिगड रहा है और उसे बचाने के क्या-क्या उपाय हैं । फिर जीतनेवाले बच्चों को पुरस्कार दिया जायेगा । मैंने उन्हें सुझाव दिया कि एक प्रतियोगिता और चलाएँ । सभी बच्चे हर महिने एक छोटी स्थिति-दर्शक टिप्पणी लिखेंगे कि उनके पेड़ को कैसे बढ़ाया और अब पेड की हालत कैसी है । इन टिप्पणियों पर भी पुरस्कार दिया जाये ।







27 अगस्त को रायपुर में कार्यक्रम उद्घाटन हुआ । मुझे भी सबने आग्रह करके बुला लिया और बच्चों को संबोधित करने को कहा । मैंने देखा करीब चार सौ बच्चे थे - सभी ग्यारह, बारह वर्ष की आयु के । बच्चों को सबसे अधिक क्या पसंद है ? कहानी । सो मैंने भी उन्हें दो कहानियाँ सुनाईं । उन्हीं में से एक है - मछुवारे की कहानी जो मैं स्नेह के पाठकों को भी बताने जा रही हूँ ।

एक मछुवारा था । रोज  समुद्र में जाना, जाल डालना और इन्तजार करना । मछलियाँ जाल में फँसती थीं । शाम को मछुवारा जाल समेटकर मछलियों को निकाल लेता । फिर उन्हें बाजार में बेचकर पैसे कमाता ।

एक दिन मछुवारा जाल फेंक कर बैठ गया था । तभी जाल में कुछ फँसा और जाल जोर-जोर से हिलने लगा । रुकने का नाम ही न ले । मछुवारे ने सोचा, जरूर कोई बड़ी मछली फँसी है । उसने जाल समेटना शुरू किया तो जाल बहुत भारी हो गया था । लेकिन कोई मछली नहीं दिखी । अन्त में जब पूरा जाल खींचकर बाहर कर लिया तो देखा एक छोटी सी बोतल फँसी हुई थी । दुखी होकर मछुवारे ने बोतल को हाथ में लिया, वह खाली दिख रही थी लेकिन बहुत भारी थी । ``क्या रहस्य हो सकता है, इतनी भारी बोतल का ?`` मछुवारा सोचने लगा । `` क्यों न इसे खोलकर देख लूँ ।``

ढक्कन बहुत ही कडाई से बंद किया गया था । जोर लगाकर मछुवारे ने उसे खोला 1 बोतल से हल्का सा धुआँ बाहर आने लगा । धीरे-धीरे धुआँ गहराने लगा, शोर बढ़ने लगा और फिर एक जिन प्रकट हुआ । उसने मछुवारे से कहा - ``अब मैं तुम्हें खाऊँगा ।``

मछुवारे ने पूछा - ``तुम कहाँ से आये हो और मुझे क्यों खाओगे ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाडा है ?`` जिन बोला - `` मैं इस बोतल में बंद था । सदियों बंद रहा और यह बोतल समुद्र में इधर से उधर जाती रही । तभी मैंने सोच लिया कि जब मैं इस बोतल से निकलूँगा तो जो भी सबसे पहले सामने आयोगा, उसीको खा जाऊँगा । अब मेरे सामने तुम हो, तो मैं तुम्हें ही खाऊँगा ।``

मछुवारा पहले तो बड़ा घबराया । लेकिन उसका दिमाग चलने लगा । उसने जिन को डाँटा - `` झूठ बोलते हो तुम । शरम आनी चाहिये । इतने बड़े जिन होकर तुम इस बोतल में कैसे रह सके ? मैं नहीं मानता । तुम झूठे हो ।``

जिन को भी ताव आ गया । बोला मैं झूठा नहीं हूँ । तुम्हें विश्वास न हो तो अभी बोतल में वापस घुसकर दिखा सकता हूँ।``

और जिन फिर से धुआँ बन कर बोतल में घुस गया तो मछुवारे ने ढक्कन बंद कर दिया ।

इस प्रकार जिन वापस बोतल में बंद हो गया और मछुवारे का संकट टल गया । उसकी जान बची ।

तो बच्चों, हमारे आस-पास भी एक बोतल का जिन रहता है और वह पर्यावरण में छा जाता है, और हमारी जलवायु बिगाडता है, अकाल, सूखा तो कभी-कभी बाढ़ लाता है । लेकिन उस जिन को बंद किया जा सकता है , और बोतल हमारे पास है । तो बूझो पहेली कि वह जिन कौन है और वह बोतल कैसी है ?

बच्चों को कहानी बहुत पसंद आई लेकिन पहेली का उत्तर नहीं सूझा । अब यदि स्नेह के पाठकों में से किसी ने उत्तर समझ लिया हो तो समझ लो कि पर्यावरण बचाने की लड़ाई में वह सैनिक से कॅप्टन हो गया ।

तो बच्चों, वह जिन है - कार्बन डायऑक्साइड । क्योंकि जब वातावरण में कार्बन डायऑक्साइड बढ़ जाता है तो वह ग्लोबल वार्मिंग अर्थात् पृथ्वीमंडल को गरम करने लगता है । लेकिन यदि किसी तरह इस जिन को बाहर न घूमने दिया जाय, और बंद कर लिया जाय तो ग्लोबल वार्मिंग को रोका जा सकता है । और इस जिन को लिये जो बोतल उपयोगी है, उसका नाम है पेड़ - अर्थात् वृक्ष । ये अपने पत्तों से कार्बन डायऑक्साइड को सोख लेते हैं । फिर सूरज किरणों की सहायता से उसके कार्बन और ऑक्सीजन को अलग-अलग कर देते हैं । अब ऑक्सीजन तो वापस वातावरण में फेंक देते हैं, पर कार्बन को खाकर पचा जाते हैं । यही कार्बन पेड़ के तने में पेड़ की ऊर्जा के रूप में बंद पड़ा रहता है । वृक्ष की आयु जितनी बढ़ेगी, पेड़ के तने में अधिक- अधिक कार्बन जमा होता चला जायेगा । लेकिन जब हम पुराने पेड़ों को काटेंगे तो वही कार्बन नाम का जिन फिर खुले में आ जायेगा, फिर कार्बन डायऑक्साइड बनेगा और फिर से ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ायेगा ।


इसी लिये पेड़ों को कहो - खुश रहो, और कार्बन डायऑक्साइड के जिन को जकड कर बंद रख्खो। हम तुम्हें नहीं काटेंगे, और कार्बन को फँसा कर रखेंगे । खास कर लम्बी आयु वाले पुराने वृक्षों को तो और अधिक संभालेंगे । क्योंकि उनमें ज्यादा कार्बन बंद किया जा सकता है ।

कहानी से बच्चों को समझ में आ गया कि जिनको बोतल में वापस बंद करने के लिए उन्हें चाहिये पेड़ रूपी बोतल । लेकिन केवल स्कूल से पौधा ले जाकर अपने घर में लगाना काफी नहीं है । केवल उसे रोज पानी देकर बड़ा करना काफी नहीं है । उसे पानी के साथ-साथ प्यार भी देना है । उसे रोज सहलाना है - और कहना है, खुश रहो । जिन को पकड़ो, और पकड़े रहो ।

फिर तो बच्चे और भी खुश हुए और झट से अपनी अपनी कापियों में नया नारा लिख लिया ।

पेड़ से कहो - "खुश रहो"


- लीना मेहेंदले