मराठीसाठी वेळ काढा

मराठीसाठी वेळ काढा

मराठीत टंकनासाठी इन्स्क्रिप्ट की-बोर्ड शिका -- तो शाळेतल्या पहिलीच्या पहिल्या धड्याइतकाच (म्हणजे अआइई, कखगघचछजझ....या पद्धतीचा ) सोपा आहे. मग तुमच्या घरी कामाला येणारे, शाळेत आठवीच्या पुढे न जाउ शकलेले सर्व, इंग्लिशशिवायच तुमच्याकडून पाच मिनिटांत संगणक-टंकन शिकतील. त्यांचे आशिर्वाद मिळवा.

शनिवार, 2 जुलाई 2011

गुरु पौर्णिमा

गुरु पौर्णिमा

मित्रों, आनेवाली आषाढी पौर्णिमा को जो कि 15 जुलाई का दिनांक होगा, उस दिन हम भारतीय परंपरा के अनुसार गुरु-पौर्णिमाका त्योहार मनायेंगे। भारतीय संस्कृती गुरु का महत्व अनन्यसाधारण माना जाता है। हम कहते हैं –मातृ देवोभव, पितृ देवोभव, आचार्य देवोभव। अर्थात् माता-पिता के साथसाथ उसी सम्मान और श्रद्धासे हम गुरु का भी स्मरण और नमन करते हैं।
एक श्लोक तुमने कई बार सुना होगा – शायद गाया भी होगा – जिसमें कवि कहता है –
गुरुर्बह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः ।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
तो इस श्लोक में गुरु को ही ब्रह्मा विष्णु और शंकर का स्थान दिया गया है। मैंने स्कूल की पुस्तकोंमें भी दो दोहे पढे थे –
गुरु गोबिन्द दोउ खडे, काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपनी जिन्ह गोबिन्द दिया बताय।।
यह तन विषकी बेलरी, गुरु अमृत की खान। सीस दिये जो गुरु मिले तो भी सच्चा जान।।
पहले दोहे में तो कबीरने सीधे घोषित कर दिया कि यदि गुरु और गोविन्द (भगवान श्रीकृष्ण) दोनों आकर सामने खडे हो गये तो मैं तो गुरुके ही पाँव पडूँगा क्योंकि भगवान का ज्ञान तो गुरु ने ही करवाया। यदि कोई समझाये ही नही कि भगवान को कैसे पाते हें या कैसे पहचानते हैं तो भगवान सामने आकर भी अनचिन्हा ही चला जायगा – इसीलिये गुरु का महत्व है।
ऐसे गुरुके प्रति प्रकट रूपमें सम्मान दर्शाने के लिये गुरु-पौर्णिमा का उत्सव मनाया जाता है। सोचो कि ऐसा क्यों, गुरु की महिमा इतनी अधिक कैसे? इसका कारण है कि मनुष्यने कई हजार वर्ष पहले ही यह समझ लिया था कि ज्ञान को बाँटनेसे वह बढता है। प्रत्येक व्यक्ति की बुद्धि अलग अलग होती है – कोई तेज बुद्धि रखता है तो कोई कम । फिरभी जबतक हर व्यक्ति यह आदान प्रदान करता रहेगा, तबतक समाज आगे बढता रहेगा। इसीलिये शिक्षा महत्वपूर्ण है और शिक्षक भी। अपने शिष्यकी प्रतिभा औऱ बुद्धिकी क्षमता पहचानकर गुरु उसे सही दिशा दिखलाता है। सही अर्थ में गुरु ही मनुष्यको मनुष्य बनाता है, उसे ज्ञान और विवेक देकर।
ज्ञान कला और कौशल (हुनर), ये तीनों बातें ऐसी होती है जो हम गुरुके साथ रहकर सीखते हैं। हमारी कलाओंमें गायन और नृत्य अभिनय, शिल्प, आदि कई कलाएँ हम गुरुसे ही सीखते हैं। कौशल भी चाहे खेती का हो या खाना पकानेका, जूते बनानेका हो या जहाज बनानेका, वेल्डिंगका हो या प्लंबिंगका, डॉक्टरीका हो या वकीलका, यह भी अच्छे गुरुसे ही सीखा जा सकता हे। तो ऐसे गुरुके लिये सम्मान दिखलाने के लिये एक दिन निश्चित हुआ – अर्थात् गुरु पौर्णिमाका दिन।और यह परंपरा केवल भारतमें हो ऐसा नही है। जपानी समाजमें भी गुरुको बहुत सम्मान दिया जाता है। सच पूछो तो दुनियाकी सभी संस्कृतियोंमें गुरु को बडा स्थान दिया गया है।
वैसे तो गुरुपौर्णिमा पर कई लोग कई तरहसे गुरुको याद करते हैं, लेकिन तुमने देखा होगा कि भारतीय संगीत जगत में इसका पर्व पर बडे बडे आयोजन होते हैं। सार्वजनिक उत्सव होते हैं, जिनमें देशके बडे बडे नामी गायक गुरुके प्रति अपनी भावांजली पेश करते हैं। यदि तुम्हे कभी ऐसे आयोजनको सुननेका मौका मिले तो छोडना मत। और हाँ, आनेवाली गुरु-पौर्णिमाको अपने शिक्षकोंको मनकी आँखोंके सामने लाकर याद कर लेना कि उनसे तुमने क्या क्या सीखा।
-- लीना मेहेंदळे


-----