मराठीसाठी वेळ काढा

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गुरुवार, 22 नवंबर 2012

शेर औऱ चूहा -- (कल्पना पंचतंत्रकी)

शेर औऱ चूहा -- (कल्पना पंचतंत्रकी)

एक जंगल का राजा शेर । ताकतवर ओर बडा दिलेर ।
गर्मीकी एक दोपहरी में । खा-पीके मगन सुस्ताने में ।

छोटासा बिल पास ही था । बिल में चूहा रहता था ।
चूहा था कुछ शरारती । गर्मी सताती उसे भी थी ।

खुली हवामें बाहर आया । शेरको चैनसे सोता पाया ।
सूझी उसे एक शरारत । शेरसे खेलनेकी हिम्मत ।

भरी छलांग शेर के ऊपर । गुदगुदाया इधर उधर ।
शेर उठा एक झटकेसे । पकडा चूहा फटके से ।

पूछा बोल क्या तेरी सजा । चूहा बोला कुछ दया दिखा ।
तेरी दया को कभी न भूलूँ । कभी मदद तेरी भी कर लूँ ।

शेरको आई इतनी हँसी, इतनी हँसी । छोटे चूहेकी बडबोली कैसी ।
बोला सुन रे ऐ छोटे । वचन न दे ऐसे खोटे ।

तू तो इतना बित्तेभर । मुझे गरज तेरी क्योंकर ।
पर तुझको छोडे देता हूँ । तेरी खुशीमें खुश हो लूँ ।

जान बची और लाखों पाया । भागके चूहा बिलमें आया ।
लेकिन शेरकी उदारता । मनही मन में सहारता ।

ऐसे ही कुछ महीने बीते । आईं भारी बरसातें ।
एक शिकारी जंगल आया । शेर पकडने जाल बिछाया ।

शेर था थोडा असावधान । जाल का थोडा भी न गुमान ।
लो, जाल में फँस गया । अब तो बडा ही अकुलाया ।

खींचाचतानी करी जालसे । जंगल गुंजाया दहाडसे ।
फिर भी जालसे निकल न पाये । क्या करूँ कोई तो सुझाये ।

आई आवाज कट कट कट । शेर ने देखी ये खटपट
पहुँच गया था छोटा चूहा । जाल काटने भिडा हुआ ।

पैने दाँत नुकीले उसके । जालकी रस्सीसे भी तीखे ।
झट की पट रस्सी काटी । शेरने पीठ उसकी ठोंकी ।
वाह रे मेरे छोटे चूहे । बुरे वक्त में काम आए ।

छोटा जानके कभी किसी पर । हँसना आजसे हुआ खतम ।
समझ आ गई बडे शेरको । छोटे में भी कितना दम ।