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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

***व्याकरणकी मजेदार बातें 2--भाषा है क्या क्या- देवपुत्र दिसम्बर 2013

व्याकरणकी मजेदार बातें 2--देवपुत्र दिसम्बर 2013

December २०१३
भाषा है क्या क्या?
भाषा क्या है? हम क्यों बोलते हैं? - सीधी सी बात है। हम अपने बात को दूसरे तक पहुँचाने के लिए बोलते हैं। जो हम बोलते हैं उसे भाषा कहते हैं। 
लेकिन रुको। क्या तुमने कभी किसी पेड पर चढने का आनन्द लिया है? या फिर कभी खिडकी की सरिया पकडकर खिडकी की मुंडेर पर चढा हैं? कोई ऐसा काम किया है जो अँडव्हेंचर मे आता है?कोई भी ऐसा काम जो करने पर दोस्त-माता पिता-चाहने वाले सबकी आँखो मे प्रशंसा का भाव भर जाता हैं? ऐसा कोई अँडव्हेचर करनेपर मन नही मानता। मन उकसाता हैं- चलो अब एक अँडव्हेचर और करो।
तो एक बार मेरे साथ भी यही हुवा। मैं लिख बैठी कि भाषा जो है, सो अपनी बात को दूसरे तक पहुँचाने का माध्यम है। तो मनने टोक कर पूछा- बस इतना ही? फिर मुझे चिढाते हुए कहा - सोचो, सोचो, भाषा और भी बहुत कुछ है। फिर मैने सोचा तो लगा- सचमुच भाषा केवल संवाद का माध्यम नही हैं। भाषा सामर्थ्य है- सौंदर्य है और एक लयबध्द नियमबध्द व्यवस्था भी है। इन तीनोंके कारण शक्ती भी हैं। और संस्कृति का परिचय तो हमारी भाषा से ही होता है।
भाषा में सामर्थ्य है -- हमे प्रोत्साहित करने का, हमे दुखी करने का, हमे खुश करने का। जब हमारे ऋषि कहते हैं- उत्तिष्ठत जाग्रत, प्राय वरान्निबोधित -- अर्थात उठो जागो और उसे जानो जो सबसे अच्छा है और उसे पाने का प्रयास करो -- तो हमे प्रेरणा मिलती है। जब माँ पिता कहते है कि, तुमने हमारा सर ऊँचा कर दिया हैं, तब मन में एक आत्मविश्वास भर जाता हैं। कोई डाँट दे कि क्या गलती कर रहे हो, तो वाकई हम सोचने लगते हैं कि क्या और क्यों गलती कर डाली। इस प्रकार भाषा में सामर्थ्य हैं- भाव उत्पन्न करने का।
भाषा में सौदर्य भी है। जैसे जब हम पहली बार सुनते हैं- "चाचाने चाचीको चान्दीके चम्मच से चटनी चटाई" तो मन अनायास इस भाषा लालित्य पर मुग्ध हो जाता है। या यह पंक्ति हो- "तरनी तनुजा तट तमाल तरुवर बहू छाये"। या फिर यह पंक्तियाँ देखो-
पयसा कमलं कमलेन पयः
पयसा कमलेन विभाति सरः।
मणिना वलयं, वलयेन मणिः
मणिना वलयेन विभाति करः।।
इस प्रकार भाषा एक सौदर्य, लालित्य और माधुर्य का भाव भी जगाती है।
भाषा में जो एक नियमबद्धता और व्यवस्था होती है उसका भी अपना महत्व है। यह नियमबद्धता दो तरह से प्रकट होती है। पद्य रचना हो तो उसे छंद, ताल, लय का ध्यान रखना पडता हैं। गद्य रचना हो तो हर वाक्य की रचना का ध्यान रखना पडता हैं। इसीको व्याकरण कहते हैं।
भाषा से संस्कृती भी झलकती है। गंगा मैया कहने से झलकता है कि हमारी संस्कृती मे नदी को माँ जैसा सम्मान दिया जाता है। जब हम कहते हैं अतिथि देवो भव तो इससे हमारी अतिथिको सम्मान देने की परंपरा झलकती है। जब हम सुनते है - "रखिया बंधा ले भैया सावन आइल" तो हमारी भारतीय संस्कृती मे भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को बात समझ में आती है।
और भाषा सें ज्ञान का प्रवाह होता है इस बातको कौन नही जानता? मनुष्य ने भाषा बोलना सीखा इसी लिये अन्य प्राणियों की तुलना में मनुष्य कहीं से कहीं पहुँच गया। हम भी अपनी भाषा का सम्मान करें क्योंकि, उसी को आधार बनाकर हम ऊँचाईयोंको छू सकते हैं।
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***व्याकरणकी मजेदार बातें 1--वर्णमाला देवपुत्र नवम्बर 2013

व्याकरणकी मजेदार बातें 1--देवपुत्र नवम्बर 2013
लीना मेहेंदले

बच्चों, मैं यदि कहूँ कि व्याकरण की मजेदार बातें जानने की और व्याकरण सीखने की शुरुआत हम कार से करते हैं तो तुम चौककर कहोगेअच्छा इस व्याकरण ने तक को घेर लिया है। तो पहले देखे की और व्याकरण का क्या नाता हैं?


हमारी भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि अनादिकाल में ब्रह्म  और शक्ति एक रूप थे- मानो ऊर्जा का एक विस्तीर्ण सागर हो और इस ब्रह्म की शक्ति ने प्रकट होना चाहा तो सबसे पहले उत्पन्न हुआ - नादब्रह्म अर्थात नाद। फिर नादब्रह्म से उत्पन्न हुआ शब्द। इसी के साथ-साथ वाणीयुक्त प्राणीमात्र उत्पन्न हुए, तो उन सबके बीच आपसी संवाद का माध्यम बना शब्दब्रह्म अर्थात् जिस तरह ब्रह्म निर्गुण और निराकार है, उस तरह शब्दब्रह्म निर्गुण निराकार नही है। उसके पास आकार है, इसलिये उसके पास नियम भी हैं।

जैसे, हम जो भी मनुष्य हैं उनके आकार का नियम है- कि उनके दो हाथ, दो पाँ, एक मस्तक, एक पेट, एक धड इत्यादि होंगे। उसी प्रकार शब्दोंका आकार जानने के लिये नियम समझ लो- बस, वे सरल हो जाएंगे तो शब्दोंको समझने के लिये हम उनके अक्षरोंको पहचानते हैं। जब कोयल गाती है तो एक शब्द प्रकट होता है- कूssहू! हम उसके दो अक्षरों को अलग-अलग पहचान सकते हैं- कू और हू और इनके अन्तर को भी पहचान सकते हैं। जब गाय रंभाती है - ss म्मा ss तब हम ह और म को पहचान सकते है। म के साथ आ लगा है और वह कोयल की कूहू के अक्षर से अलग है, यह भी एक पहचान लेते है।

हमारी संस्कृति में हम यह भी पढ़ते हैं कि ब्रह्म से जब शक्ति प्रकट हुई तब उसका पहला आश्वासक और वरदायी रूप था वाणी - अर्थात् सरस्वती का। सरस्वती ने शब्दब्रह्म के साथ अक्षरों को ब्रह्मस्वरूप कर दिया उनमे मंत्र की शक्ति भर दी। और इसी कारण उनका एक क्रम भी बना दिया। इसी लिये कहा जाता है- “अमंत्रं अक्षरम् नास्ति ” अर्थात् मंत्र शक्ति न हो ऐसा कोई भी अक्षर नही हैं- हर अक्षर में मंत्र शक्ति है- यदि हमे उसे जागृत करने की विधी आ जाए तो हम उससे लाभ उठाते हैं।

इस प्रकार अक्षरों का क्रम बना - , , , , , - क्यों कि इन पांचो का उच्चार करने के लिये एक ही प्रकार की शारीरिक हलचल होती है- कण्ठ से और इनके उच्चारण में जीभ कही टिकती नहीं। इन्हें कण्ठवर्ग कहा जाता है। अगले पांच अक्षर देखो- , , , , ये भी एक ही प्रकार से उच्चारित होते है जीभ को तालू में टिकाकर - इसलिये उन्हें तालव्य कहते हैं।

तो कुछ ऐसी बनी है हमारी भाषा, हमारे शब्द, हमारे अक्षर। अगली कडी में इनको विस्तार से समझेंगे।

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