राष्ट्रभाषा हिंदी
बच्चों, तुमने सुना होगा कि एक पंचक्रोशीसे दूसरी तक जाते जाते भाषा बदल जाती है। पंचक्रोशीका अर्थ है पांच कोस। – पुराने जमानेमें दूरी मापने के लिये इस माप का प्रयोग करते थे। आजके मापमें पांच कोस हो जायेंगे लगभग १५ किलोमीटर।
तुम्हें पता है कि हमारा देश विशाल है । तो सोचो कि एक जगहसे थोडी दूर जाते जाते भाषा थोडी थोडी बदलती रही तो हमारे पास कितनी भाषाएँ होंगी। तुमने सही सोचा -- हमारे देश में छः हजारसे अधिक बोलीभाषाएँ हैं। मजेकी बात ये है कि अगर तुमने देशभरमें अच्छी तरह घुमक्कडी की तो एक दिन ऐसा होगा जब किसी व्यक्तिके बोलनेके ढंगसे तुम पहचानने लगोगे कि यह भारत के किस भागका रहनेवाला है।
तो इतनी सारी भाषाएँ होना एक सुंदरसे फूलोंके गुच्छेकी तरह है जिसमें अलग-अलग रंगके और अलग-अलग सुगंधके फूल हैं। लेकिन इनमेंसे कुछ ऐसी होंगी जिन्हें मुख्य भाषाएँ कहा जा सकता है। ऐसी सोलह भाषाएँ हैं।
फिर भी एक भाषा ऐसी होनी चाहिये जो देशकी पहचानकी भाषा होगी -- वह है हमारी राष्ट्रभाषा हिंदी। हमारे देशके सवासौ करोड लोगोंमेंसे लगभग सभी इसे समझते हैं, और यदि पूरे विश्वकी बात सोचो तो विश्वकी सबसे अधिक बोली जानेवाली तीन भाषाएँ हैं -- हिंदी, अंग्रेजी और चीनी (मण्डारिन)। इस नाते भी हमें अपनी राष्ट्रभाषा हिंदीपर अभिमान है।
१४ सितम्बरको हम राष्ट्रभाषा दिवस मनाते हैं, ताकि इसके महत्वको हम फिर एक बार मनमें उतार लें। आजसे कुछ पैंसठ वर्ष पहले हमारा देश स्वतंत्र हुआ। लेकिन उससे पहले सौ वर्षोंसे हमारे देशके महान लोग स्वतंत्रता के लिये लड रहे थे। उस समय पूरे देशमें चेतना जगानेमें और देशकी लडाई एक साथ लडनेके लिये संपर्क-सूत्रके रूपमें हिंदी भाषाका बडा योगदान रहा। आज भी हिंदी जन-जनकी भाषा है। लेकिन याद रहे कि हमें इसे ज्ञानभाषा भी बनाना है। अर्थात हिंदीमें और बहुत बहुत साहित्य-रचना हो, विज्ञान और तकनीकी पुस्तकें लिखी जायें, शब्दकोष तथा ज्ञानकोश रचे जायें और विश्वभरमें लोग इसे पढकर आनंदित होते रहें, ये सारे काम भी हमें निरंतरतासे करने हैं।
--लीना मेहेंदळे
शनिवार, 28 जुलाई 2012
सदस्यता लें
संदेश (Atom)