शनिवार, 23 अप्रैल 2016
कछुआ और खरहा Text + Video kharaha aur Kachhua
खरहे और कछुएकी दौड
एक था खरहा, उजला उजला
कोमल कोमल बालोंवाला
उसकी आँखें लाल लाल
दुडुक दुडुक उसकी चाल
तेज तेज भागता
खेलने लग जाता ।
और एक था कछुआ ।
धीरे धीरे चलता
पर कामको पूरा करता ।
खरहेने कछुएको देखा
कछुएने खरहेको देखा ।
खरहा हँसा हो हो हो
कितना धीरे चलते हो।
चल, परबतपर चढते हैं
वहाँ पेडसे मीठे केले खाते हैं।
आओ दौड लगाएँ
जो जीते वह मीठे केले खाये ।
जीत-हार की बातें सुनकर
तोता आया, मैना आई,
बंदर और गिलहरी आई ।
गिलहरीने सीटी बजाई
दौड दौड अब शुरू हो गई ।
खरहा भागा दुडुक दुडुक
पहुँचा आधे रास्तेमें
देखी तितली देखी घास।
उडते पंछी नील आकाश।
पंछीके गाने सुनकर
लग गया बतियानेमें ।
घास देखी हरी हरी तो
मगन हो गया खानेमे।
खाते खाते नींद आई
दौडकी बातें भूला गईं।
कछुआ धीरे धीरे चला
चलता रहा चलता रहा ।
रुका नही थका नही
इधर उधर भी देखा नही।
पहुँचा सीधा परबतपर
बाजी गया जीत ।
ताली बजाई मैनाने
बंदर गाये गीत ।
नींद खुली तो दौडा खरहा
भागा आया परबतपर
अरे, यहाँ तो बैठा कछुआ
बाजी पूरी जीतकर ।
कछुआ हँसा हो हो हो
बोला खरहे, सीख लो।
तेजभी हो तो रुकना मत
काम को बीचमें छोडो मत।
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शुक्रवार, 15 अप्रैल 2016
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