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गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

***व्याकरणकी मजेदार बातें 1--वर्णमाला देवपुत्र नवम्बर 2013

व्याकरणकी मजेदार बातें 1--देवपुत्र नवम्बर 2013
लीना मेहेंदले

बच्चों, मैं यदि कहूँ कि व्याकरण की मजेदार बातें जानने की और व्याकरण सीखने की शुरुआत हम कार से करते हैं तो तुम चौककर कहोगेअच्छा इस व्याकरण ने तक को घेर लिया है। तो पहले देखे की और व्याकरण का क्या नाता हैं?


हमारी भारतीय संस्कृति की मान्यता है कि अनादिकाल में ब्रह्म  और शक्ति एक रूप थे- मानो ऊर्जा का एक विस्तीर्ण सागर हो और इस ब्रह्म की शक्ति ने प्रकट होना चाहा तो सबसे पहले उत्पन्न हुआ - नादब्रह्म अर्थात नाद। फिर नादब्रह्म से उत्पन्न हुआ शब्द। इसी के साथ-साथ वाणीयुक्त प्राणीमात्र उत्पन्न हुए, तो उन सबके बीच आपसी संवाद का माध्यम बना शब्दब्रह्म अर्थात् जिस तरह ब्रह्म निर्गुण और निराकार है, उस तरह शब्दब्रह्म निर्गुण निराकार नही है। उसके पास आकार है, इसलिये उसके पास नियम भी हैं।

जैसे, हम जो भी मनुष्य हैं उनके आकार का नियम है- कि उनके दो हाथ, दो पाँ, एक मस्तक, एक पेट, एक धड इत्यादि होंगे। उसी प्रकार शब्दोंका आकार जानने के लिये नियम समझ लो- बस, वे सरल हो जाएंगे तो शब्दोंको समझने के लिये हम उनके अक्षरोंको पहचानते हैं। जब कोयल गाती है तो एक शब्द प्रकट होता है- कूssहू! हम उसके दो अक्षरों को अलग-अलग पहचान सकते हैं- कू और हू और इनके अन्तर को भी पहचान सकते हैं। जब गाय रंभाती है - ss म्मा ss तब हम ह और म को पहचान सकते है। म के साथ आ लगा है और वह कोयल की कूहू के अक्षर से अलग है, यह भी एक पहचान लेते है।

हमारी संस्कृति में हम यह भी पढ़ते हैं कि ब्रह्म से जब शक्ति प्रकट हुई तब उसका पहला आश्वासक और वरदायी रूप था वाणी - अर्थात् सरस्वती का। सरस्वती ने शब्दब्रह्म के साथ अक्षरों को ब्रह्मस्वरूप कर दिया उनमे मंत्र की शक्ति भर दी। और इसी कारण उनका एक क्रम भी बना दिया। इसी लिये कहा जाता है- “अमंत्रं अक्षरम् नास्ति ” अर्थात् मंत्र शक्ति न हो ऐसा कोई भी अक्षर नही हैं- हर अक्षर में मंत्र शक्ति है- यदि हमे उसे जागृत करने की विधी आ जाए तो हम उससे लाभ उठाते हैं।

इस प्रकार अक्षरों का क्रम बना - , , , , , - क्यों कि इन पांचो का उच्चार करने के लिये एक ही प्रकार की शारीरिक हलचल होती है- कण्ठ से और इनके उच्चारण में जीभ कही टिकती नहीं। इन्हें कण्ठवर्ग कहा जाता है। अगले पांच अक्षर देखो- , , , , ये भी एक ही प्रकार से उच्चारित होते है जीभ को तालू में टिकाकर - इसलिये उन्हें तालव्य कहते हैं।

तो कुछ ऐसी बनी है हमारी भाषा, हमारे शब्द, हमारे अक्षर। अगली कडी में इनको विस्तार से समझेंगे।

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