व्याकरणकी मजेदार बातें 6 -- देवपुत्र मई 2014
May 2014
व्याकरण की मजेदार बातें
शब्दोंको जोड़ने की अद्भुत विधियाँ(भाग५)
-लीना मेहेंदले
बच्चो! आज हम संस्कृत और भारतीय भाषाओं का ऐसा चमत्कारी पक्ष देखेंगे जो संसार की दूसरी भाषाओं में नहीं हैं।दो या अधिक शब्दों को जोड़ने की दो अद्भुत विधियाँ हमारी भाषाओं में हैं जिन्हें हम सन्धि और समास के नाम से जानते हैं।
पहले शब्द का अंतिम अक्षर और दूसरे शब्द का पहला अक्षर ये दोनों मिलाकर इन शब्दों की संधि की जा सकती है।एक ओर एक जोड़कर।संन्धिके सामान्य उदाहरण हमें अपनी दैनंदिन भाषा में बारबार मिल जाते हैं जैसे- ‘स्वागत’ अर्थात् ‘सु’ और ‘आगत’ की सन्धि। ‘महेश’ अर्थात् ‘महा’ और ‘ईश’ की सन्धि।सन्धि के लिए पहले शब्द का अन्तिम अक्षर और दूसरे शब्द के पहले अक्षर को कुछ खास खास नियमों के अनुसार जोड़ा जाता है।महा+ ऋषि से बना महर्षि, वन + औषधि= वनोषधि।
परन्तु संस्कृत भाषा की विशेषता है कि ऐसी सामान्य सन्धि के अलावा विशेष सन्धि का भी चलन है जिसे समास कहेंगे जेसे शिवस्य और धनुष्यःजोड़कर बना शिवधनुष्यः। इसे हम हिन्दी में भी कह सकते है ‘शिव का धनुष’की जगह शिवधनुष।इसे समास कहते है। समास में जोड़े गए पदों को खोलकर विस्तार से उनका अर्थ बताने की प्रक्रियाको विग्रह कहते हैं।
समास का एक लाभ हैकिसी बात को सारांश या छोटे शब्दों से व्यक्त करना और दूसरा लाभ है लालित्य अर्थात् भाषा कासौन्दर्य बढ़ाना।
समास के लिए जब शब्दों को जोड़ा जाता है तब सन्धि की तरह उन्हें संयुक्त नहीं किया जाता बल्कि उनके भाव को जोड़ने जैसा कुछ किया जाता है।उदाहरण के लिए हम कुछ समास शब्द लेते हैं-
राजपुत्र अर्थात् राजा का पुत्र
रसोईघर अर्थात् रसोई के लिए बनाया घर (या कमरा)
आजीवन अर्थात् जीवन पर्यन्त
जैसी मतिहै वैसा - यथामथि
राम एवं कृष्ण- रामकृष्ण
इन शब्दों को बारिकी से देखने पर संधि और समास का अन्तर समझ में आता हैं।
सन्धि और समास को आगे भी कुछ अकों में देखते और समझते रहेंगे।
शनिवार, 5 अप्रैल 2014
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1 टिप्पणी:
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