मराठीसाठी वेळ काढा

मराठीसाठी वेळ काढा

मराठीत टंकनासाठी इन्स्क्रिप्ट की-बोर्ड शिका -- तो शाळेतल्या पहिलीच्या पहिल्या धड्याइतकाच (म्हणजे अआइई, कखगघचछजझ....या पद्धतीचा ) सोपा आहे. मग तुमच्या घरी कामाला येणारे, शाळेत आठवीच्या पुढे न जाउ शकलेले सर्व, इंग्लिशशिवायच तुमच्याकडून पाच मिनिटांत संगणक-टंकन शिकतील. त्यांचे आशिर्वाद मिळवा.

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

महाभारतकी रचना बाल नाटिका

महाभारतकी रचना बाल नाटिका -- महाभारतस्य रचना
व्यास - गणेश (बाल नाटिका) 

पात्र- व्यास, वैशम्पायन, ब्रह्मदेव, गणेश, मूषक, एक ज्यूनियर शिष्य.
प्रसंग- महाभारत- लेखन
[ स्टेजपर सभी पात्र होंगे। वे अलग अलग स्थानों पर जाकर अलग- अलग गुटों में आपस में संवाद करेंगे.]
व्यास व वैशम्पायन स्टेजके मध्यमें आकर --
वैशंपायन- गुरुजी प्रणाम। आज आप अत्यंत प्रसन्न हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि आप जिस काव्य की रचना कर रहे थे, वह पूरा हो गया है।
व्यास- सत्य कह रहे हो वत्स वैशंपायन! पिछले कई दिनों से इस महा काव्य की पंक्तियाँ मेरे मन में उमड- घुमड रही हैं। मैं अपनी आँखें बंद करता हूँ तो एक एक श्लोक का स्मरण होता है।
वैशंपायन- गुरुजी अब आपके महाकाव्य को लिखने का भी कोई प्रबन्ध होना चाहिये ताकि उसके विभिन्न खंडोपर अलग अलग विद्वान् चर्चा करें और उसे अधिकाधिक लोगोंको सुना सकें।
व्यास- योग्य कहा वत्स! अब यह विचार करने का समय आ गया है कि इतने विशाल काव्य को लिखने में कौन समर्थ है।
(ज्यूनियर शिष्य जो स्टेजपर एक दूसरे कोने में अकेला खडा है और खिडकी से बाहर देख रहा है, वह दौडते हुए व्यास के पास आता है)
ज्यू. शिष्य- गुरुजी, गुरुजी। देखिये तो कौन आ रहा है। साक्षात् ब्रह्मदेव आश्रम में आ चुके हैं और आप के कक्षकी ओर आ रहे हैं।
व्यास- अरे तो पुत्र, मुझे शीघ्र वहाँ ले चलो। वैशम्पायन, उनके लिये आसन व तत्पश्र्चात् सुगंधी पुष्पोंकी व्यवस्था करो।
[व्यास व ज्यू.शिष्य जाने लगते हैं- वैशम्पायन स्टेज के एक भाग में रखी हुई कुर्सी सरकाकर बीच में ले आता है। ब्रह्मदेव भी अपने कोने से निकलकर व्यास की और बढते हैं।- बाद में तीनों को कुर्सी के पास आना है)]
व्यास- ब्रह्मदेव को झुककर नमन करते हुए- प्रणाम प्रपितामह। मेरे अहोभाग्य की आज आपने मेरी कुटी में पधार कर मुझ पर कृपा की। आइये, आसन ग्रहण करें।
[ब्रह्मदेव को लाकर कुर्सी पर बैठता है । ज्यू. शिष्य और वैशम्पायन अगली व्यवस्था के लिये स्टेज के दूसरे कोने मे जाते हैं]
ब्रह्मदेव- पुत्र व्यास, मेरा आशीर्वाद ग्रहण करो। मुझे सूचना मिली है कि तुम किसी महाकाव्य की रचना कर रहे हो।
व्यास- सत्य है भगवन्। यह काव्य भी है और इतिहास भी। कुरुवंश के प्रतापी चक्रवर्ती सम्राट युधिष्ठिर ने अपनी पत्नी व अपने अनुजों के साथ धर्म और न्याय के अनुसार राज्य किया। परन्तु ऐसे धर्मराज्य की स्थापना के लिये उन सभी को महान् संघर्ष करना पडा। उसी संघर्ष गाथा को मैंने श्लोक बद्ध किया है।
ब्रह्मदेव- यह समुचित कार्य हुआ। पाण्डवों ने जिन गुणों को निभाते हुए अपना आत्मबल बढाया और जय प्राप्त किया उन गुणों का जन- जन के मानस में प्रभाव रहे और जनसमुदाय भी उन गुणों को अपनाये, इस हेतू ऐसा महाकाव्य लिखा जाना महत्वपूर्ण है। व्यास, मैं तुम्हें साधुवाद देता हूँ।
व्यास- परन्तु पितामह, मेरे मन में एक चिन्ता है।
ब्रह्मदेव- मुझे ज्ञात है कि तुम्हारी चिंता क्या है। उसी संबंध में तुम्हें सुझाव देना है। निःसंकोच कहो- क्या चिंता है?
व्यास- भगवन्। पाण्डवों के जय की यह कथा अत्यंत विशाल है। मैं श्लोक रचता गया और उन्हें अपने मन में संजोकर रख लिया। अब उनकी संख्या लगभग दो लाख हो गई है। इतना प्रदीर्घ काव्य लिख लेने में कौन समर्थ होगा?
ब्रह्मदेव- पुत्र व्यास, आज विश्वमें ऐसा एक ही समर्थ व्यक्ति है और वह है परम बुद्धिमान श्री गणेश। तुम उन्हीं को प्रार्थनापूर्वक इस कार्य के लिये निमंत्रण दो। परन्तु स्मरण रखना कि श्रीगणेश विनोदप्रिय भी हैं। कुछ न कुछ नटखटपन अवश्य करते हैं।
(दोनो हँसते हैं)
व्यास- मैं स्मरण रखूँगा भगवन्। यथा संभव उन्हें उलझा दूँगा ताकि वे व्यस्त रहें और कुछ अन्य कौतुक ना करें।
ब्रह्मदेव- तो में चलता हूँ। तुम्हारा कार्य संपन्न हो।
(वैशम्पायन कुछ सुगंधी पुष्य लेकर आता है और ब्रह्मदेव उन्हें लेते हुए स्टेज में पीछे जाते हैं। स्टेज के दूसरे भाग मे व्यास और गणेश मिलते हैं)
व्यास- श्री गणेशजी, आपको नमन है। आपने मेरी प्रार्थना पर गौर किया और यहाँ पधारे। आपका स्वागत है।
गणेश- आप जैसे विद्वानों के साथ चर्चा का सुअवसर मिले तो मैं भी हर्षित होता हूँ। कहिये, क्या इच्छा रखकर आपने मेरा स्मरण किया?
(व्यास और गणेश दो अलग दिशाओं में जाते हैं। गणेश अपने मूषक के साथ और व्यास वैशम्पायन के साथ बात करते हैं)
गणेश- हा, हा, हा मूषक । मैंने मुनिश्रेष्ठ व्यास को संकट में डाल ही दिया।
मूषक- (हँसता है)- यह आपके स्वभाव के अनुकूल ही है कि आप बुद्धिमानों की परीक्षा लेते रहें। मुनिवर के साथ आपने क्या कौतुक रचाया?
गणेश- सुनो मूषक, महर्षि व्यास ने एक महान इतिहास को महान ग्रंथकाव्य के रूप में रचा है। वह विश्व का महानतम ग्रंथ होगा इसमें कोई संदेह नही। महर्षि ने मुझसे अनुरोध किया कि मैं उसे लेखनी बद्ध करूँ।
मूषक- उचित प्रस्ताव है श्रीगणेश। ऐसा महान ग्रंथ यदि लिखा जाता हो, तो आपके सिवा उसे कौन लिख सकता है ! फिर आपने क्या कौतुक किया?
गणेश- हा, हा। मैंने एक पण उनके सामने रख्खा कि उनका श्लोक कथन इतनी शीघ्रगति से हो कि मेरी लेखनी रुके नही। यदि श्लोक रचना के विचार करने के लिये वे रुक गये और मेरी लेखनीको भी रुकना पडा तो उसके आगे मैं नही लिखूँगा। परन्तु मूषक, महर्षि व्यास भी कम बुद्धिमान नही।
(दूसरे कोने में व्यास और वैशंपायन का संवाद-)
वैशंपायन- गुरुजी, यह तो अच्छा समाचार है कि स्वयं श्री गणेश आपके महाकाव्य को लिपी बद्ध करने वाले हैं। मैं आसनदि सारी व्यवस्था तत्काल करता हूँ। क्या वे सचमुच इतनी सरलता से मान गये?
व्यास-(हँसकर)- नही वत्स। ब्रह्माजीने सत्य ही कहा था। श्री गणेश की स्वयं की बुद्धि और शिव- पार्वती का लाड- प्यार ! दोनों का ऐसा मिश्रण है कि विद्वानों से प्रेम रखते हुए भी उनकी परीक्षा लेने में गणेश को सर्वदा आनंद मिलता है। मेरे सम्मुख भी यह पण रख्खा है कि उनकी लेखनी को रुकना न पडे। मैं शीघ्रता से श्लोक कथन करता चलूँ।
वैशंपायान- (हँसता है)- ब्रह्माजी ने सही कहा था कि गणेशजी कुछ न कुछ कौतुक रचेंगे। अब आप क्या करेंगे गुरुजी?
व्यास- मैंने भी अपना पण रख दिया। कि जब तक मेरे श्लोक का गूढार्थ न समझ लें तब तक गणेश उसे नही लिखेंगे। अब मैं कुछ ऐसे गूढ श्लोकोंकी रचना करूँगा कि गणेशको अर्थ समझनेमें थोडा समय लगे। उतने अवकाश काल में मैं अगले कई श्लोक योग्य अनुक्रम में बांध लूँगा।
[ मूषक, गणेश, वैशंपायन और व्यास स्टेज में पीछे चले जाते हैं। ब्रह्मदेव स्टेज के बीचोंबीच आते हैं और दर्शकों से निवेदन करते हैं -
ब्रह्मदेव - और इस प्रकार महर्षि व्यास ने जय नामक इतिहास ग्रंथकी रचना की जो महाभारत के नामसे विख्यात हुआ। इसे स्वयं गणेशने लिखा और संसार में लेखन कला को प्रस्थापित किया । जय श्री गणेश.

--------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

कोई टिप्पणी नहीं: