एक बंदरने खोली दुकान -- यू ट्यूबसे
एक बंदरने खोली दुकान
आये ग्राहक भी ऐसे महान
देखो उनकी अनोखी शान शान शान
बिल्लीजी आई लेकर पैसे
बंदरजी देते हो चूहे कैसे -- रं पं पं पं
भालूजी आये ता थै ता थै
क्या दाम है शहदका बताना ओ भई -- रं पं पं पं
देखी सियारने गुडकी डली
उनके तो मनकी कलियाँ खिली
मिठासकी सोचमें सियार हुए धुंध
बंदरजी बोले अब दुकान बंद
बंदरजी बोले अब दुकान बंद बंद बंद बंद बंद
एक बंदरने खोली दुकान
एक बंदरने खोली दुकान
एक बंदरने खोली दुकान
बुधवार, 22 अगस्त 2012
मंगलवार, 21 अगस्त 2012
टिक टॉक दो सुइयोंकी एक घडी -यू ट्यूबसे
टिक टॉक दो सुइयोंकी एक घडी -यू ट्यूबसे
टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक
दो सुइयोंकी एक घडी
धीरे धीरे आगे बढी
टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक
लम्बी मिनटों में भागे भागे
छोटी भी बढ गई आगे
टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक
रुके कभी ना ये थक कर
बारह घंटे का चक्कर
टिक टॉक टिक टॉक
टिक टॉक टिक टॉक
चुलबुली -- यू-ट्यूबसे
जैसे उसकी आँख खुली खेलने निकली चुलबुली
कभी दौड भाग कभी झूल झूल
कभी घूमघाम कभी कूद कूद
घर पहुँची तो माँ बोली मुँह हाथ धो लो चुलबुली
माँ जब मुँह हाथ का हो ऐसा हाल
तो क्या गंदे न होंगे बाल
इसी लिये धोना है सिर्फ मुँह हाथ नही
मुँह हाथ और बाल
चलो अब खेलने चलते हैं
खेलने निकली बाहर चुलबुली
पेडके नीचे जा पहुँची
तभी अचानक कहीं दूरसे
उसने एक आवाज सुनी -मियाँऊँ
कहाँपे हो तुम छोटी बिल्ली ढूँढ रही थी चुलबुली
तभी जो उसने ऊपर देखा पेड पे हो तुम फँसी हुई
देख बचाने बिल्लीको फिर चढी पेडपे चुलबुली
चढते चढते चढते चढते बिल्लीसे वो जा मिली
फिर दौड भाग और खेल कूदकर दोनो घरकी ओऱ चली
घर पहुँची तो माँ बोली मुँह हाथ धो लो चुलबुली
माँ जब मुँह हाथ का हो ऐसा हाल
तो क्या गंदे न होंगे बाल
इसी लिये धोना है सिर्फ मुँह हाथ नही
मुँह हाथ और बाल
चलो अब फिरसे खेलते हैं।।
कभी दौड भाग कभी झूल झूल
कभी घूमघाम कभी कूद कूद
घर पहुँची तो माँ बोली मुँह हाथ धो लो चुलबुली
माँ जब मुँह हाथ का हो ऐसा हाल
तो क्या गंदे न होंगे बाल
इसी लिये धोना है सिर्फ मुँह हाथ नही
मुँह हाथ और बाल
चलो अब खेलने चलते हैं
खेलने निकली बाहर चुलबुली
पेडके नीचे जा पहुँची
तभी अचानक कहीं दूरसे
उसने एक आवाज सुनी -मियाँऊँ
कहाँपे हो तुम छोटी बिल्ली ढूँढ रही थी चुलबुली
तभी जो उसने ऊपर देखा पेड पे हो तुम फँसी हुई
देख बचाने बिल्लीको फिर चढी पेडपे चुलबुली
चढते चढते चढते चढते बिल्लीसे वो जा मिली
फिर दौड भाग और खेल कूदकर दोनो घरकी ओऱ चली
घर पहुँची तो माँ बोली मुँह हाथ धो लो चुलबुली
माँ जब मुँह हाथ का हो ऐसा हाल
तो क्या गंदे न होंगे बाल
इसी लिये धोना है सिर्फ मुँह हाथ नही
मुँह हाथ और बाल
चलो अब फिरसे खेलते हैं।।
सोमवार, 20 अगस्त 2012
चींटी क्या करती है
चींटी क्या करती है
see video here
देखो चींटी क्या करती
ये चींटी तो काम करती ।।
चींटी क्या क्या करती है
खाना जमा करती है ।।
घूम घूम करके दिनभर
ढूँढती है रोटी शक्कर ।।
फिर घरमें ले आती है
उसे जतन से रखती है।।
------------------------------------------------------
see video here
देखो चींटी क्या करती
ये चींटी तो काम करती ।।
चींटी क्या क्या करती है
खाना जमा करती है ।।
घूम घूम करके दिनभर
ढूँढती है रोटी शक्कर ।।
फिर घरमें ले आती है
उसे जतन से रखती है।।
------------------------------------------------------
रविवार, 5 अगस्त 2012
खरहे और कछुएकी दौड
खरहे और कछुएकी दौड -- मेरे नौ माहके पोतेको हिंदी तो सिखाना है। फिर इस मराठी
बालगीतका भावान्तर कर डाला । यह कथा भी सबको मालूम है और मराठी बालगीतका यू-ट्यूब भी उसे
पसंद है।
एक था खरहा, उजला उजला
कोमल कोमल बालोंवाला
उसकी आँखें लाल लाल
दुडुक दुडुक उसकी चाल
तेज तेज भागता
खेलने लग जाता ।
और एक था कछुआ ।
धीरे धीरे चलता
पर कामको पूरा करता ।
खरहेने कछुएको देखा
कछुएने खरहेको देखा ।
खरहा हँसा हो हो हो
कितना धीरे चलते हो।
चल, परबतपर चढते हैं
वहाँ पेडसे मीठे केले खाते हैं।
आओ दौड लगाएँ
जो जीते वह मीठे केले खाये ।
जीत-हार की बातें सुनकर
तोता आया, मैना आई,
बंदर और गिलहरी आई ।
गिलहरीने सीटी बजाई
दौड दौड अब शुरू हो गई ।
खरहा भागा दुडुक दुडुक
पहुँचा आधे रास्तेमें
देखी तितली देखी घास।
उडते पंछी नील आकाश।
पंछीके गाने सुनकर
लग गया बतियानेमें ।
घास देखी हरी हरी तो
मगन हो गया खानेमे।
खाते खाते नींद आई
दौडकी बातें भूला गईं।
कछुआ धीरे धीरे चला
चलता रहा चलता रहा ।
रुका नही थका नही
इधर उधर भी देखा नही।
पहुँचा सीधा परबतपर
बाजी गया जीत ।
ताली बजाई मैनाने
बंदर गाये गीत ।
नींद खुली तो दौडा खरहा
भागा आया परबतपर
अरे, यहाँ तो बैठा कछुआ
बाजी पूरी जीतकर ।
कछुआ हँसा हो हो हो
बोला खरहे, सीख लो।
तेजभी हो तो रुकना मत
काम को बीचमें छोडो मत।
------------------------------------------
बालगीतका भावान्तर कर डाला । यह कथा भी सबको मालूम है और मराठी बालगीतका यू-ट्यूब भी उसे
पसंद है।
एक था खरहा, उजला उजला
कोमल कोमल बालोंवाला
उसकी आँखें लाल लाल
दुडुक दुडुक उसकी चाल
तेज तेज भागता
खेलने लग जाता ।
और एक था कछुआ ।
धीरे धीरे चलता
पर कामको पूरा करता ।
खरहेने कछुएको देखा
कछुएने खरहेको देखा ।
खरहा हँसा हो हो हो
कितना धीरे चलते हो।
चल, परबतपर चढते हैं
वहाँ पेडसे मीठे केले खाते हैं।
आओ दौड लगाएँ
जो जीते वह मीठे केले खाये ।
जीत-हार की बातें सुनकर
तोता आया, मैना आई,
बंदर और गिलहरी आई ।
गिलहरीने सीटी बजाई
दौड दौड अब शुरू हो गई ।
खरहा भागा दुडुक दुडुक
पहुँचा आधे रास्तेमें
देखी तितली देखी घास।
उडते पंछी नील आकाश।
पंछीके गाने सुनकर
लग गया बतियानेमें ।
घास देखी हरी हरी तो
मगन हो गया खानेमे।
खाते खाते नींद आई
दौडकी बातें भूला गईं।
कछुआ धीरे धीरे चला
चलता रहा चलता रहा ।
रुका नही थका नही
इधर उधर भी देखा नही।
पहुँचा सीधा परबतपर
बाजी गया जीत ।
ताली बजाई मैनाने
बंदर गाये गीत ।
नींद खुली तो दौडा खरहा
भागा आया परबतपर
अरे, यहाँ तो बैठा कछुआ
बाजी पूरी जीतकर ।
कछुआ हँसा हो हो हो
बोला खरहे, सीख लो।
तेजभी हो तो रुकना मत
काम को बीचमें छोडो मत।
------------------------------------------
शुक्रवार, 3 अगस्त 2012
सदस्यता लें
संदेश (Atom)