vyakaran 7 चा
छ
बच्चों ,
पि ले
अंकमे हमने देखा कि भारतीय भाषाओंमें
दो शब्दोंको जोडनेकी दो विधियाँ
हैं- संधी और समास ।
आज हम समासके संबंधमे
कुछ बातें जानेंगे। समास
में जिन दो शब्दों को मिलाया
जाता है,
उनके साथ कुछ और भी शब्द जुडे
हुए होते है जो
उनके सामासिक शब्दके भाव को
बखान करते है,
परंन्तु प्रत्यक्ष
समास में उनका लोप हो जाता है
।
मित्रौं,
मेरे स्कूलके
दिनोंमें जब हमें समासवाला
पाठ पढा रहेथे तो में चकित
हो रही थी कि कितनी
सूक्ष्मता
से छोटी छोटी
बातों के लेकर अलग अलग नियम
बने,
और यद्यपि यह छोटा
शब्द है समास,
किन्तु यह पाठ वाकई
मे बडी विस्तार से है। लेकिन
जब पाठके अंतमे बहुब्रीहि
समाज की बात आई,
तब तो मैं अभिभूत
हो गई।
जैसे
अचानक
कोई सुंदर चित्र
सामने आ जाये,
वैही ही खुशी होती
है जब कोई सुंदर कल्पना सामने
आ जाय । ऐसे ही होते है बहुब्रीहि
समास के शब्द।
समासमें चूँकी
कमसे दो शब्दो को या दो पदों
को जोडा जाता है ,
इसलिये समास की चार
श्रेणियाँ की गई है।
यदि
पूर्वपद प्रधान हो तो वह
अव्ययीभाव समास होता है जैसे
अनुरूप । उत्तरपद प्रधान हो
तो तत्पुरुष। दोनों पद समनभावसे हों तो द्वन्द्व। लेकिन कभी कभी
ऐसा भी होता है कि दोनों पदो
के बाहर कोई तीसरी बात ही इंगित
होती है। ऐसे समासों को बहुब्रीहि
कहते है। एक शब्द देखो पीताम्बर -- इसका सरल अर्थ है पीला वस्त्र।
परंन्तु हम इसका विशेष अर्थ
लगाते हैं और जो बहुधा पीला
वस्त्र धारण करता है ऐसे श्रीकृष्ण को पीताम्बर कहते है ।
इसी प्रकार शनैश्चर का सरल अर्थ होगा
धीरे चलना
। लेकिन विशेष रूपसे हमने यह नाम
उस ग्रह को दे दिया जो आकाशमें
बहुत धीरे धीरे . चलता
हुआ प्रतीत होता है अर्थात
शनि ग्रह ।
इस
प्रकार बहुब्रीहि समास न केवल
भाषा के चमत्कार
ओर अलंकार को बढाता है,
वरन भाषा में एक
गूढता
भी निर्माण करता है जो हमारे
संचित
ज्ञानके आधार पर टिकी है।
एक
शब्द देखो गरुडध्वज इसके दो
पद हैं गरुड और ध्वज । लेकीन
इसका विग्रह करते हैं गरुड
. चिह्न
का
हैं
जिसका ध्वज वह । यस्य ध्वजायाम् गरुडचिह्नः अस्ति सः अर्थात विष्णुः।
इसी
प्रकार यस्य ध्वजायाम् कपि तिष्ठति सः कपिध्वजः अर्थात
अर्जुन।
लेकिन
कपिध्वज का अर्थ अर्जुन है यह जानने के लिय हमें उस कहानीसे परिचित
होना होगा कि कैसे हनुमानजी
ने अर्जुन के रथ पर उसकी ध्वजा
के रुप में बैठने का अभिवचन
दिया।
बहुब्रीहि समास के विषयमें पहले हम यह समझें कि सही शब्द तो है बहुव्रीहि -- बहु व्रीहिः अस्ति यस्य सः -- अर्थात् जिसके पास बहुत अन्न हो - जो संपन्न व्यक्ति हो। तो यहाँ हमने दोनों पदोंका सरल अर्थ बहुत अन्न नही लगाया वरन् दोनों अर्थोंसे परे एक ऐसी व्यक्तिको इंगित किया जो संपन्न है। इस प्रकार बहुव्रीहि समासका अच्छा उदाहरण तो स्वयं यह शब्द ही है। संस्कृतके नियमानुसार कभी कभी व अक्षर के पर्याय या अपभ्रंशके रूपमें ब अक्षर स्वीकृत हो जाता है। अतः यह शब्द बना बहुब्रीहि ।
अपनी पढाई के दिनोंमें भाषा लालित्य के विचारसे मैंने बहुब्रीहि समासके दो भेद किये थे -- वैसे शब्द जिनका प्रचलित अर्थ केवल एक खास व्यक्तिको इंगित करता है और दूसरी ओर बहुब्रीहि के ही वे शब्द जो एक पूरी श्रेणीको बताते हैं । पहले प्रकारके शब्दोंके पीछे कोई न कोई कहानी होती है। उदाहरणस्वरूप लम्बोदर का सरल अर्थ हुआ बडा पेट और इसका बहुब्रीहि शब्दार्थ होगा -- ऐसा व्यक्ति (कोई भी) जिसका बडा पेट है परन्तु प्रत्यक्षतः हम लम्बोदर शब्दको गणेशजीके नामके अर्थमें लेते हैं। इस श्रेणीके शब्दोंको समझनेके लिये हमें अपनी विरासतमें मिली सारी पौराणिक कथाओंको पढना या सुनना होगा - और जब तक पढाईकी अपेक्षा कहानीकी बात हो, तब तक तो उसका स्वागत ही है।
तो आओ, ऐसे शब्दोंकी सूचि बनाते हैं - और निश्चय करते हैं कि उनसे संबंधित सारी कहानियाँ पढ डालेंगे --
गजानन - गज (हाथी) के जैसे मुखवाला - जो गणेशजीका नाम है।
पंचानन – पाँच मुखोंवाला -- जो शिवजीका नाम है।
षडानन – शिवजीके बडे पुत्र कार्तिकेयका नाम ।
अब शिवजी के नाम देखो -
चंद्रमौलि या चंद्रशेखर - जिसके मस्तकपर चंद्रमा विराजमान है
शशिधर - जिसने (शशी = चंद्रमा) को धारण किया है
गंगाधर - जिसने गंगाको धारण किया है
फणीधर -जिसने सर्पको धारण किया है ।
वाहनके आधारपर वृषभवाहन हुए शिव, मूषकवाहन हैं गणेश, मयूरवाहन है कार्तिकेय, हंसवाहिनी है सरस्वती और सिंहवाहिनी है दुर्गा।
परन्तु मुरलीधर और गिरिधर दोनों श्रीकृष्णके नाम हैं।
पद्मनाभ, लंबोदर, शैलजा, गिरिजा, हिमकिरीटिनी।
लेकिन वारिवाह शब्द को देखो - जो पानीको ढोकर ले जाये वह अर्थात् बादल – तो यह भी बहुब्रीहि शब्द है लेकिन यह किसी भी बादलपर लागू है तो मैंने इसे दूसरी श्रेणीमें रखा हे। एक बडा मजेदार शब्द है द्विरेफ । इसका सरल अर्थ तो होगा दो बार र । लेकिन किसी कविमन रखनेवालेने इसे विशेष अर्थमें प्रयोगमें लाकर एक नया बहुब्रीहि शब्द दिया । वह कीटक जिसके नाम में र अक्षर दो बार आया है, अर्थात भ्रमर। तो जिस कविने पहली बार भँवरेके लिये द्विरेफ शब्दका उपयोग किया उसकी प्रतिभा को हमें नमन करना पडेगा।
सामासिक शब्दोंके बारे में हम और भी पढते रहेंगे।
समासोंमें अनेकानेक सूक्ष्म भेद हैं। इनके विषयमें एक विस्तृत पाठ यू-ट्यूबपर उपलब्ध है जिसे श्री शाम चंदन मिश्रने बनाया है।
संस्कृत
जगत नामक ज्ञानस्थलपरभी पाठ
देखनेको मिलते हैं।
भेद --
व्याधिकरण
अर्थात् जब एक पद प्रथमामें
और दूसरा षष्ठी या सप्तमी में
हो।
समानाधिकरण
– जब
दोनों पदोंमें द्वितीया
से सप्तमी
इ. समानभावसे हों।