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गुरुवार, 10 अप्रैल 2014

***व्याकरणकी मजेदार बातें 5 -- देवपुत्र एप्रिल 2014

व्याकरणकी मजेदार बातें 5 -- देवपुत्र एप्रिल 2014

April 2014
व्याकरण की मजेदार बातें (भाग ५)
-लीना मेहेंदले

     मित्रो! आज हम संस्कृत के प्राचीन ग्रंथों की बात करेंगे।कहते हैं कि ज्ञानी व्यक्ति जब विचार करने बैठते हैंतो उन्हें विश्व के रहस्य समझ मेंआने लगते हैं।हमारे चारो वेद ऋग्, युज, साम और अथर्व भी इसी प्रकार तपस्वी ऋषियोंके सम्मुख प्रकट हुए। फिर उन्हें लोगोंके बीच सुनाया गया। एक से दूसरे ने सुना, दूसरे से तिसरे ने और इस प्रकार उनका ज्ञान और प्रकाश फैलने लगा।
     लेकिन कुछ लोगों का केवल ज्ञान के प्रसार से संतोष नहीं होता।वे एक व्यवस्था बनाना चाहते हैं ताकि ज्ञान का प्रसार सुचारु रुप से चलता रहे। वे व्यवस्था के लिए नियम बनाने में जुट जाते हैं। नियमों का पालन कई तरह से सुविधाएं निर्माण करता है, अनुशासन सिखाता है, कुशलता प्रदान करता है। दूसरी ओर वह कल्पना - अविष्कार और नवनिर्माण में बाधक भी होता हैऔर यदि नियमों की सम्यक उपयोगिता को बारम्बर परख कर उनमें आवश्यक परिवर्तन न किए जाएं तो वही नियम बोझ बन जाते हैं।नियम बनाना अपने आप में एक जटिल परन्तु श्रेयस्कर काम होता है जो केवल
ज्ञानी एवं अनुभवी व्यक्ति ही कर सकते हैं। कुल मिलाकर यदि ज्ञान का अपना महत्व और उसके प्रसारण के लिए बने नियमों का महत्व, इनमें बीस उन्नीस इतना ही अन्तर होता है। दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं।
     जब वेद प्रकट हुए और उनके अन्दर समाहित ज्ञान का प्रसर भी होने लगा तो छः तरह की विधाओं में नियम बनाए गए जिन्हे वेदांग कहा जाता है।ये हैं- शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छन्द और ज्योतिष।
     शिक्षा नामक वेदांग हमें वेदों के सूक्तों की सही उच्चारण विधी को समझाता है। ऐसी मान्यता है कि वेद सूक्तों के सही उच्चारण में मंत्र शक्ति होती है जिससे कई प्रकार के कार्य सपन्न होते हैं- साथ ही वे सूक्तियां हमें जीवन के अलग-अलग व्यवहारों में पारंगत करती हैं। कल्प नामकवेदांग हमें बताता है कि किसी कार्य को सपन्न करने की प्रक्रिया क्या होती है। एक-एक कर कौनसी क्रियाओं को किस प्रकार सम्पन्न करना है इत्यादि। अर्थात् आज के युग में ISO Certification का प्रोटोकाल या प्रोसिजर बनाया जाता है वही बात, किन्तु एक विशाल स्तर पर, कल्पों में वर्णित है। व्याकरण हमें वाक्य रचना के विषय में बताता है। निरुक्त से हमें शब्दोंकी उत्पत्ति
का ज्ञान होता है। ज्योतिष नामक वेदांग से हमें नक्षत्र, ग्रह, उनकी गतियाँ तथा खगोल शास्त्र का ज्ञान होता है और छन्द की तो बात ही मत पूछो - किसी भी पढ़ाई को गाकर पढ़ने से वह तुरंत याद हो जाती है, दीर्घकाल तक समृति में रहती है। और उसका अच्छा आकलन भी होता है।वेद सूक्त भी छ्न्दबद्ध्र हैं और हमारा प्रायः ७० प्रतिशत वाड्मय छन्दबद्ध है। तो यह छन्दों की पढ़ाई भी छः वेदांगो में से एक है। इस सारी नियमवाली के कारण ही वेद लिखित रूप में न होने पर भी उनका प्रसार हुआ, लोगों ने उन्हें समझा और उनके ज्ञान से लाभिन्वित हुए।


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