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बुधवार, 9 दिसंबर 2020

नटखट ढब्बूजीके गीत ५ हिंदी संस्कृत

 

नटखट ढब्बूजीके गीत

) ओ ढब्बूजी, तुम क्या खाते जी

मैं तो खाऊँगा, चना जोर गरम

और कचोरी और आईस्क्रीम

ए ढब्बूजी, तुम क्या खाते जी

मैं तो खाऊँगा, लड्डू और बर्फी

या फिर खाऊँगा ठंडी ठंडी कुल्फी

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भो ढब्बूजी त्वम् किं खासि

खादिष्याम्यहम् चनाजोरगरमम्

एवं कचोरीम् वा आईस्क्रीमम्

भो ढब्बूजी त्वम् किं खासि

खादिष्याम्यहम् लड्डून् वा बर्फीम्

अथवा प्रियं मे शीतां शीतां कुल्फीम् ।।

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) ओ ढब्बूजी, तुम क्या पढते जी

मैं तो पढूँगा कखगघङ

अआइई और क्षत्रज्ञ

ए ढब्बूजी, तुम क्या पढते जी

मैं तो पढूँगा एक दो तीन चार

पाँच छः सात आठ नौ और दस

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भो ढब्बूजी त्वम् किं सि

पठिष्यामि अक्षरान् कखग

अआइई एवं क्षत्रज्ञ

भो ढब्बूजी त्वम् किं सि

पठिष्यामि एकं द्वे त्रीणि चत्वारि

पंच षट् सप्त अष्ट नव च दश ।।

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) ओ ढब्बूजी, तुम क्या देखते जी

मैं तो देखूँगा रंगबिरंगे फूल

गाते पंछी और हरी हरी घास

ओ ढब्बूजी, तुम क्या देखते जी

मैं तो देखूँगा उजला उजला चाँद

काले काले बादल नीला आकाश

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भो ढब्बूजी त्वम् किं पश्यसि

बहूनि पश्यामि पुष्पाणि अहं

गायन्तान् खगान् हरितम् ग्रासम्

भो ढब्बूजी त्वम् किं पश्यसि

पश्यामि अहं चंद्रमाम् शुभ्रम्

श्यामवर्णान् मेघान् नीलमाकाशम् ।।

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) ओ ढब्बूजी, तुम क्या करते जी

मैं तो कूदूँगा धप्पधपाधप

खीर खाऊँगा गपगपागप

ओ ढब्बूजी, तुम क्या करते जी

मैं तो भागूँगा भैया से आगे

दादीजी मेरे पीछे पीछे भागे

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भो ढब्बूजी त्वम् किं करिष्यसि

कूर्दिष्याम्यहम् धप्पधपाधप

खीरं खादिष्यामि गपगपाग

भो ढब्बूजी त्वम् किं करिष्यसि

भ्रातृभ्यः अग्रे धाविष्याम्यहम्

पितामही धाविष्यति पृष्ठतः मह्यम् ।।

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) ओ ढब्बूजी, तुम कहाँ बैठते जी

मैं तो बैठूँगा दादीजी की गोदमें

झूला झूलूँगा झूलनकुर्सीमें ।।

ओ ढब्बूजी, तुम कहाँ बैठते जी

मैं तो बैठूँगा दादीजीकी पीठपर

दादी बोलेगी ये है बोरी भर शक्कर

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भो ढब्बूजी कुत्र उपविश्यसि

मातामह्याः अंके उपविश्याम्यहम्

हिंदोला हिंदोला दोलयाम्यहम्

भो ढब्बूजी कुत्र उपविश्यसि

मातामह्याः पृष्ठे उपविश्याम्यहम्

सा कथयिष्यति शर्करा इदम् ।।

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