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शनिवार, 12 जनवरी 2008

अभिभावक की डगर 3 --जानो अपनी समृद्धि को

अभिभावक की डगर 3
जानो अपनी समृद्धि को
published in Himalayan Oasis, Simla, issue 3

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जानो अपनी समृध्दि को
      -  लीना मेहेंदळे
   हमारा देश और संस्कृति दोनों अतिप्राचीन हैं |अतएव इतका जतन करना भी हमारी जिम्मेदारी बन जाती है |  जतन करने की कई विधाओं में सबसे महत्त्वपूर्ण है नामकरण और गिनती |
   क्या पशुपक्षी भी एक दूसरे को नाम से पहचानते या बुलाते हैं?  शायद नही |  कमसे कम हम मनुष्यों को तो यह नही मालूम |  लेकिन हम अपने संगी साथियोंको नाम से पहचानते हैं | घर में नया शिशु जन्म लेता है ती जल्दी से उसका नामकरण करते है | घर मे कोई प्रिय जानवर हो, जैसे गाय, बकरी, कुत्ता, घोडा, सांड तो उनका भी हम नामकरण करते हैं |  इस प्रकार नामकरण से यह सुविधा होती है कि उस व्यक्ति की बाबत बात करना आसान हो जाता है | हम वस्तुओं के भी नाम देते हैं |  व्याकरण मे सबसे पहले हम नाम या संज्ञा के विषय में ही पढते हैं |  किसी वस्तु के नाम के साथ जब हम उसका बखान करते हैं तो इससे ज्ञान के विस्तार में सुविधा होती है |  यही बात गणित और गिनती के साथ भी है |
  
खगोल शास्त्र और अंतरिक्ष विज्ञान का आरंभ हमारे ही देश से हुआ |  हमारे पूर्वजों ने आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों के नाम रख्खे |  उनकी गतिविधियों का निरीक्षण किया |  और पाया कि नक्षत्रों के बीच विचरण करता सूर्य घूमघाम कर 365 दिनों बाद वापस अपने पूर्वस्थान पर आ जाता है |  इसी संख्या से किसी वृत्ताकार वस्तु के अंश गिनने की विधी बनी |  चूँकि 365 थोडा औडम आँकडा है जब कि उसके नजदीक 360 का आँकडा बडा अच्छा - उसमे 2,3,4,5,6,8,9,10,12,15,18,20,30,40 आदि कई अंको से भाग लग जाता है, इसलिए वृत्तांश गणना और कालगणना दोनों के लिये उपयुक्त आँकडा चुना गया 360 का |  यों वर्ष के दिन तय हुए 360 |  और जो 5 दिन बचे उनका क्या ?  साथ ही - देखा गया कि चंद्र भ्रमण और सूर्यभ्रमण की गिनती भी एक जैसी नही है | चंद्रमा को उसी नक्षत्र स्थिती में आने के लिये करीब 27 दिन लग जाते हैं | इस प्रकार तय हुआ कि मोटे तौर पर 360 दिनों का एक वर्ष और 30 दिनों का 1 महिना - यों 12 महिने का भी एक वर्ष |  लेकिन यह मोटे तौर पर। ज्योतिषीय गणना के लिये इन 30 दिनों को शुक्ल और कृष्ण पखवाडों में विभाजित किया गया|  इनमें से हर माह कुछ तिथियों का क्षय हो जाता है तो अत्यल्प मात्र में कभी कोई तिथी अधिक भी हो जाती है |  और 3 वर्षों मे एक बार अधिक मास भी आ जाता है |  इन दो विधियों से चांद्रमास और सौर-वर्ष की गणना में आए अंतर को पाटा जाता है |  इसका विस्तारपूर्वक वर्णन मैंने अपनी आकाशदर्शन की प्रकाशनाधीन पुस्तक में किया है |
  
इसके साथ ही अंतरिक्ष में नक्षत्रों का भी नामकरण हुआ |  उनकी भी गतिविधियोंका निरीक्षण हुआ |  खगोलशास्त्र की पढाई हुई और उसके आगे फलित - ज्योतिष का विकास हुआ - अर्थात्‌ नक्षत्रोंकी गतिविधियों का मनुष्य पर, पृथ्वी की घटनाओं पर, मौसम, जलवायु, समुद्री हवाओं पर, बारिश पर इत्यादि क्या प्रभाव पडता है| हालाँकि नक्षत्रों का नामकरण ग्रीक संस्कृति में भी हुआ लेकिन भारत में नामकरण के आगे फलित - ज्योतिष का भी विकास हुआ |  जो ग्रीक संस्कृति में नही हुआ |
  
आज जरूरी है कि अभिभावक होने के नाते हम यह सारा इतिहास बच्चों के साथ कहें - सुनें - बाँटे |  इस्त्रायल मे, यहूदियों में यह प्रथा है कि उनके नववर्ष के दिन घर के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति पूरे परिवार को साथ बिठाकर उनसे यहूदियों का पूरा इतिहास बयान करते है |
  
हमारे देश मे भी आचार्य - शिष्य परंपरा में गुरू अपने शिष्यों को पास बैठाकर और सुनाकर - उन्हें ज्ञान और शिक्षा देते थे |  इसी को उपवास अर्थात्‌ गुरू के पास (या परमात्मा के पास) बैठना कहा जाता था | 
लेकिन आज जो मैं कहना चाहती हूँ वह बात केवल पास बैठकर, सुनकर ज्ञान देने - लेने की बात नही है |  बात नामकरण और गिनती की है |  हमारी धरोहर जो हिमालय है उसके कई छोटे बडे शिखरों में ही हिमाचल प्रदेश बसा  है | इनमें से कई शिखरों के स्थानीय नाम हैं और प्राय हर शिखर पर किसी देवता का मंदिर है। लेकिन आवश्यकता इस बात की है कि इन में से हर छोटे बडे शिखर का नामकरण गाँव के बुजुर्गोंकी सलाह से, हमारी भाषा में होना चाहिये और उनकी गिनती की खास पध्दति बना कर उनकी गणना भी होनी चाहिये | लाईब्रेरी के पुस्तकों की तरह पर्वत शिखरोंकी गिनती की भी एक खास पद्धति होती है। उसे सीख कर वह पद्धति अपनानी चाहिये।


       हर छोटे बडे शिखर का नामकरण करते समय शायद हमें हर गाँव की बाबत पुराणकालीन संदर्भोका सहारा लेना पडेगा |  और फिर केवल इतना ही काफी नही है कि केवल नाम दिये गए हों और स्थानीय बुजुर्गों को वे याद हों। इनकी लिखित पहचान भी आवश्यक है। उदाहरण स्वरूप गाँव के शून्य मील वाले पत्थर पर या पोस्ट ऑफिस में यह भी लिखा जा सकता है कि इस गाँव के पर्वत शिखर का नाम अमुक है, इसकी गणन संख्या ये है, इसकी ऊँचाई इतनी है और पहाडी के मंदिर में ये देवता विराजते हैं।

ऐसी गिनती और नामकरण से ही हमारी धरोहर का जतन हो सकेगा और समृध्दि भी |
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